Saturday, April 27, 2019

सप्तांकनी

सप्तांकनी
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मृत्यु के पश्चात जीवन उत्थान
उन्मन प्राण निश्चल आभिमान
वो दीन के छत्र मे जन्म प्रात
मनोरम उष्ठान दृश्य मनोरम गात
नित बन चुकी वह सप्तांकनी
जो वैभव जन्म पूर्व चित्रांकनी

उस दृश्य का अरुण नित्य
खिन्नती सी वह निश्चिंत
क्या जीवन आधिपत्य
पता नही वह कौन प्रतित्य
एक क्षण व्याकुल देह रथ
नारी कि यह संघर्ष पथ
जीवन का नारी लोक कथ्य
धीरे धीरे उष्ठान यत्य
सप्तांकनी की जीवन कथ्य
भविष्य कि प्रेरणा का तथ्य
चित्र के द्वारा कहे सत्य

शिशु से जब हुयी बालिका
दिखती गोरी सी राधिका
उसकी शोभा आंकना
करते कुन्जो और कंचना
चंचल मधुर सी वेदना
उसके ओठो आभिवंदना
सुन आते  सप्तांकना
कहते तुम्हारी क्या समानता

उसका जीवन इतर अंश
पर विपक्ष उसका विध्वंस
जो चाहे बस उसका अंन्त
निशांत द्रुष्ट है उसका मन
फुल सी कोमल कन्त
उस पर बुरी कलंन्त
छवि रुप अति भुजंग
भंगता जिसको राक्षणग्य

आज का स्निग्ध विहाग
गाता अनुपम अनुराग
जो सप्तांकनी का विराग
उसमे  नही अविराम
सतत चीखते काग
ये शान्त सी आग
एक दिन होगी तम चिराग
जिसमे ध्वस्त होगा नाग
जो इसकि शोभा का प्रभाग

अब वह हो चली प्रिय वधू
जिसके स्वामी राजरघू
पाकर सप्तांकनी को रघू
कहता प्रतिपल हे प्रभू
जीवन अमृत दिया प्रभु
मै आप पर निरचय वार चलू
साथ ही इसके सास लू

रघूराज का संकट तब टला
अन्तिम जीवन का अन्त खडा
उसकि राज्य का टुकडा
जो रक्षणग्य छिनना चाहता
राज्य संकट मे पडा
सप्तांकनी का ऋषि योग
अब रक्षणग्य का अन्त भोग
वन आयेगा विनिमय शोक
रक्षणग्य जायेगा मृत्युलोक
कह कर कथन सप्तांकनी
करती जीवन कि आंकनी
युध्द को वह ललकरती
आज मणिकर्णिका बन जाउगी
य फिर मिट्टी मे जाउगी
तुझको दुष्ट यदि रोक दिया
तुझको सौजन्य सा मृत्युलोक भेज दिया

युध्द राज्य आरम्भ
चारो दिशाओ मे शोक थम्भ
कम्प कम्प सी कम्पन्न
निपुर ध्वनि चितन्य
बनी सप्तांकनी माँ अम्ब
जिसके एक पद चिन्ह
लाखो ने खोये आवचित्य
सहस गया रक्षण्गय
अब हार निश्चिंत्य

इतने कहने के बाद
गिरती प्रतिपल गर्म आवसाद
चारो तरफ मृत्यु निनाद

रक्षण्गय को हार आभाष
दिखता जीवन का नास
छुप कर भागने का प्रयास
अभी जीने कि आस
राज्य छिनने कि प्यास
बुझ गयी युध्द पश्चात
सप्तांकनी कि जय घोष

दिखा दिया नारि श्क्ति
युध्द का मधुमय युक्ति
और माँ अम्ब कि भक्ति
निश्चय कि दिलाएगी मुक्ति
इस बात का करती युध्द पुक्ति
सप्तांकनी कि अभिव्यक्ति
युध्द है रक्षण्गय से जीतती

कुतूहल मे उल्लास हर्ष
रक्षण्गय सेना गयी सहर्ष
करना अब सोच विमर्श


करन कोविंद