Saturday, May 4, 2019

इन्द्रधनुष
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झलके घटा इन्द्रधनुष कि
भरे सतरंग चमक पुलक भरे

वह झलक रहा व्योम धरा के सीने मे
पुलकित किया आकाश को
अन्तर लिये धनु रंगिले से
चमक पडा था धीरे से
व्योम धरा के सीने मे
मेघ आये सतरंगे आाये
सतरंगो से इन्द्रधनुष भाये
अन्नत कण धनुष सतरंगो के
झलके थे धीरे से व्योम धरा के सीने मे
निकला क्षितिज पर जो देखने मै
भागा
रेशम स लटक रही पोशाक सीने का
धागा
प्राता कि निशा मे जब सपने से
जागा
देखा सुबह कि अरुणाई मे इन्द्रधनुष
 सुभागा
नभ के उजाले मे निकला एक कोष मे
आधा
चन्द्र स चमके सतरंग यौवन पर उससा न
 दागा
पावस के बाद आज मनोहर उषा मे
ज्यादा
कडकते नभ मे मेघ निनाद मे कडकड सी आवाज
चिर नवल का मधुर रुप इन्द्र सुहाना पे
रंग राज
दर्शाता चित्र अनुरुप बरसातो के लाली के
 बाद
गिरते थे बूँद झर झर प्रसुन रुप चमेली के अवसाद
अतुल अपार शक्ति देह लिये इन्द्रनीलमणि
 सा विस्तार
अंन्त्र सतरंग उषा का प्रकाश  लिये अर्धचन्द्र
 स आकार
चमक निश्चल रुप कुंदन लिये धनु मणि
 उद्गार
सतरंग अंचल के भंग लिये चमक मणि
 अपार
अंतरंग  तरंग चंचल रंग लिये तरंग कण
 बौछार
मंडल मे चन्द्र आकार लिये धरे सतरंग
 भाल
रशि्म विषम कण लिये बिखेरे सतरंग
 धार
नील मणि सी ठिठक रही तितली सा
 वो भंग
जहाँ से तितली लयी अपने उत्सुकता
 के रंग
इन्द्रधनुष  बिखेर ता धरा पर कण
 सतरंग
भरी उमंग झडती जाये झरनो सा
 धरे उमंग
नील मणि स चमक रहि मणि इन्द्र
 के रंग
स्वर्ण रशिम को छिडक रही इस धरा
 के पास
मणि देख सब अश्चर्य हुये सतरंग हुआ
 आकाश
नवल रंग नवल पुलक भरे धरे मेघ
 केश पाश
काले काले मेघ हटेअहवाहन सतरंग
 झष
पालकि के शोभा  जडे मणि मे मुक्तक
 काँच
चले नक्षत्र संग मणि  टोली लिये धनु के
 आँच
सुवर्ण  सतरंगो  का भूधर पर स्नेहित
 नाच
स्निग्ध प्रदीप्त प्रकाश लिये रंग नील
 वृन्द
सुरभ्य थिर  रहा सतरंग रजनी का  दुग्ध
 चन्द्र
अनादि है इस जहाँ मे तेरी माया की। ये
 पंथ
उडे  बिखरे जहाँ धरे सतरंग केभंग
विहंग
चमकिली सतरंगनी कि ओस होते तेरे
 विस्तृत
फैले वसुधा। मे कण तेरे रुप भरे जल
 अमृत
संतरण जो देख लिया पावस अनुरुप बुझी
तृप्त
व्याकुल था दर्शन पा लिया उस दिन मन
 चित्त
 रत्न हिलोर से भरे रत्न तेरे कन्ठ रंग
 कुंडल
जो प्रकशित कर रहा नीलमणि सतरंग
 मंडल
धरे सात रंग  रखे मस्तक अकार चंद
 चन्दन
भाव बाधा मुक्त तु चमक बिखेरे नभ
 चमन
निरन्तर चमके नव किसलय पर कुछ
पल
उत्थान धीरे तनिक क्षण उपरान्त घेरे  व्योम
 तल
थोडे समय मे रंगच्छवित से कर देता संसार
 अचल
प्रकाश अमल विस्तृत स्वर्ग लोक तक फैल जाये
कभी किरकिरी का नेत्र भ्रमण रूप वसुधा पर दर्शाये
मुकुट सतरंग साथ मेघो का पंख लिये मन हर्शये

5 comments:

  1. बहुत सुंदर उपमा अंलकार से अलंकृत सरस लालित्य लिये अनुपम रचना। छायावादी कवियों सी प्रस्तुति।

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  2. बेहतरीन रचना

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करन कोविंद