Saturday, May 4, 2019

समय

समय आ रहा अनन्त शान्त से
न बूझो न देखो क्लान्त श्रान्त से
कभी समय केवल मात्र नाम था
उसमे भी केवल घ्रर उद्दम था
कई बर्ष पहले
खुली शाम थी
      आकाशगंगा के पहले
               तम शान्त थी
प्रलय आ गया फिर कोश प्रान्त से
सचेत किया किया न अंकित
प्रलय का होना चाहिए सिध्दांत से
मची फिर तबाही हुआ वो न संकेत
 कई बर्ष पहले
 खुली शाम थी
         आकाशगंगा के पहले
                  तम क्लान् थी
निश्चय ही आयी घटा को आगडाई
कई वर्ष बीते दुनिया बस आयी
उसमे भी थमी न आग बन पायी
कभी ज्वाला फूटे कभी  भूकम्प आयी
कई बर्ष पहले
खुली शाम थी
    आकाशगंगा के पहले
             तम क्रान्त थी
नीली भंग जिसकी बनी पृथ्वी वह
बसे चिर चिरागुन बसे आर्थिवी वहा
देखा फिर मंजर बने पार्थिवी वह
आज वहा देखो, देखो आबादी वहा
कई बर्ष पहले
खुली शाम थी
       आकाशगंगा के पहले
          तम शान्त अक्रन्त थी


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करन कोविंद