Thursday, May 2, 2019

भला कैसे भूल सकता हूँ। उस रात कि पुष्पांजलि को जिसमे ह्रदय तार मन्द अमन्द अन्तस्थल मे गुंजित मधुवीणा प्रात हल्कि विभावरी करते नक्षत्र प्रचार उस तारे को अच्छे से जानता हूँ। भला कैसे भूल सकता हूँ कुन्ज कि किसलय मे मधुसूदन के प्राण नेह के अधरो से गिरता प्रतिपल राल उडती आती वृक्ष अंक से मन्द चाल कैसे युक्त से आवरूध्द कर सकता हूँ। भला कैसे भूल सकता हूँ। रोज खद्दर जीवन से रूष्ट करता विलाप कैसे सभालू जैविक क्रिया कलाप हो मेरे कवि लक्ष्य का उद्दार क्यो कठिनाईयों से पीछे भागता हूँ। भला कैसे भूल सकता हूँ।

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